पहली बार ऐसा हुआ है कि देश का प्रधानमंत्री इसरो में रात भर रुक कर मिशन पर नज़र रख रहा है, अन्तिम समय में सिग्नल टूट जाने पर भी वहां से उठ कर नहीं गया, वैज्ञानिकों का हौंसला बढ़ाया, बच्चों से बात की, देश को संबोधित किया। एक लीडर का यही रोल होता है जो मोदी जी ने निभाया। यही है नया भारत जहां टैलेंट की कद्र होने लगी है, जिन लोगों को ये असफलता लग रही है वो ये देखें कि इसरो हमेशा पैसे की कमी से जूझता रहा है लेकिन किसी पूर्व सरकार ने इसकी सुध नहीं ली। अरे, प्रधानमंत्री तो छोड़ो कभी कोई मंत्री भी वहाँ जाकर वैज्ञानिकों के साथ खड़ा नहीं हुआ। इस देश ने ऐसे ऐय्याश प्रधानमंत्री भी देखें हैं जिनके कपड़े धुलने के लिए विदेश जाते थे, जो विमानों पर अपने बच्चों का जन्मदिन मनाते थे, जो नौसेना के जलपोतों में हनीमून मनाते थे लेकिन मोदी जी ने आज फिर साबित कर दिया कि कोई गांधी कोई नेहरू उनके नाखून की भी बराबरी नहीं कर सकता। गर्व है इसरो पर, गर्व है मेरे प्रधानमंत्री पर।आभार
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द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की हालत खराब थी ..प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण इंग्लैण्ड में कोई घर ऐसा नहीं था जिसमें की पुरुष न मारा गया हो ...अंग्रेजों के पास अपनी सेना नहीं थी ..जो थी वो भारतीय सेना थी या तुरंत बनाई हुई ब्रिटिश सेना ... ऐसा ही समय 1857 में भी आया था जब अंग्रेजों को चुन चुन कर मारा गया था ..और इसमें भारतीय महिलाएं और सामान्य कृषक मजदूर सभी शामिल थे औरतों ने अंग्रेजो की गर्दनें दरातियों से काट डालीं थी इस भयानक संहार के बाद कुल 3-4 सौ अंग्रेज किसी तरह भारत से जान बचाकर भागे थे या छुप कर रह रहे थे... बाकीयों को क्रांतिकारियों ने मार डाला था ...1857 की क्रांति सफल थी राजनैतिक ऐक्यता नहीं थी इस फूट ने पुनः विदेशी गुलामी की नींव डाली जब अंग्रेजों से देश खाली था उस समय के कुछ गद्दार देशी राजाओं ने अंग्रेजों को पत्र लिखे थे की आओ और यहाँ शासन करो ...उसके बाद अंग्रेजों ने यहाँ के देशी राजाओं नवाबों के साथ मिल कर भारतीय क्रांतिकारी परिवारों गाँवो शहरों और प्रान्तों में खूनी खेल शुरू किया और ये दमन किया जो निरंतर चलता रहा ...इसका स्वरूप बदल गया भारतीय प्रजा को दीन
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सोसल मीडिया पर कभी कभी स्कूल व शिक्षा के संदर्भ में दो तरह के वीडियो वायरल होते रहते हैं ! एक तो सरकारी प्राइमरी स्कूल के टीचरस् की जिसमें..उनके ज्ञान की परीक्षण करते हुए दिखाया जाता हैं ! दूसरे इंगलिश मीडियम के स्कूल के बच्चों की जिसमें सामान्य सामाजिक या जियोपोलिटी से सम्बंधित प्रश्न कूल डूड व डूडनियो से पूंछते हुये दिखाया जाता हैं ! और उनके अजीबो गरीब उत्तर पर सिर पीटा जाता हैं ! परंतु मेरा इन दोनों बातो पर थोड़ा भिन्न मत हैं ..इसी वजह से अपना सिर नहीं पीटता ! -------------------------------- पहली बात तो ये प्राइमरी स्कूल के टीचरस् की नियुक्ति करने का प्राईमरी उद्देश्य बच्चों शिक्षा देना नहीं रह गया है ..प्राइमरी उद्देश्य बेरोजगारो को रोजगार देना मात्र रह गया है ! अब मेरी बात पर न नुकुर न करिये हमे भी मालूम है ..और आपको भी मालूम है कि हर साल प्राइमरी स्कूल में कितने बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रवेश ले रहे हैं ?? जिन माता-पिता मे शिक्षा के प्रति तनिक भी जागरुकता व रुचि हैं ..चाहे वो किसी भी वर्ग का हैं .मजदूर हो , किसान हो ...अपने बच्चों को प्राइमरी स्कूल में
केराप री राजनीति
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जंग लड़ी 2 चुनाव जीते 1 हारे उसके बाद अपने विस्वास पात्र लोगो पर दांव लाग्या @हेमा राम ढ़ाका पूर्व सरपंच केराप आप 1 सीमेंट के डीलर है आपने सबसे पहला चुनाव लड़ा और बहुत ही घमासान आपने पहला चुनाव अपने बहादुर सिंह राठौड़ के सामने 4 वोट से जीत दर्ज की जब सामान्य सीट थी उसके बाद जब दूसरा चुनाव आपने लड़ा तो आपने मास्टर पुरखा राम जी ढ़ाका के सामने जीत दर्ज की जब obc की सीट थी लेकिन जब आप हैट्रिक लगाने के मुंड में थे उस समय आपके सामने दलीप ढाका ने आपको 345 वोट से हरा दिया आप सरल स्वभाव और मिलनसार यक्ति है और आपमे जब आपका दो चुनाव जीतने के बाद जो चर्चा चलती उसमे आपको राजनीतिक चाणक्य कहाँ जाता था और आज भी आप जहाँ अपना दाँव लगता है वहाँ लगते है आप मूल कांग्रेस के कार्यकता है और आप हर चुनाव में कांग्रेश पार्टी के लिये दम खम लगते है रामु जी ढाका - आपके बड़े भाई और केराप बैंक में काफी टाइम तक सेवा देते रहे और अब रिटायर होकर हो सकता आपकी राजनीति में सक्रिय भूमिका में इस बार नजर आए निवेदक आपके वोटर आपकी जनता
अगरोट के खोखे
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अगरोट के खोखे... "खोखा" को जानने के लिए मारवाड़ी भाषा का ज्ञान होना जरूरी है वरना वो यही समझेंगे की मैं "खो-खो" खेल के बारे में बात कर रहा हूँ। राजस्थान में रहकर अगर किसी ने "खोखा" नही खाया तो समझलो कि उसने अब तक झक मारी है। वैसे राजस्थानी भाषा में "खोखा खाने" का मतलब भी झक मारना ही होता है लेकिन मैं नही मानता इस मुहावरे को! बल्कि मैं तो ये कहूँगा की खोखा और सूखे बोर (झड़का के) ये मारवाड़ के "ड्राई फ्रूट्स" है। आज भी जब राजस्थान आता हुँ तो "सालासर" से ये दो ड्राई फ्रूट्स लाना नही भूलता। काजू,बादाम, अखरोट,पिस्ता झक मारते हैं अगर किसी ने बचपन में ये खाये हो तो। मैं ये भी जानता हूं कि आजकल की जनरेशन सबके सामने खोखे खाना अपनी शान के खिलाफ मानते हैं लेकिन छुप छुपकर जरूर खाते हैं। खोखा और वो भी "अगरोट" के! वाह वाह... क्या स्वाद है ..। खोखो का भी मौसम होता हैं एक महीने तक का! और जो खेजड़ी पर खुद पक कर सूखते है वो ही ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं। इसमें भी ध्यान रखना पड़ता कि वो भैरूजी के खेजड़े के तो नही है? वरना उल्टी होने