द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की हालत खराब थी ..प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण इंग्लैण्ड में कोई घर ऐसा नहीं था जिसमें की पुरुष न मारा गया हो ...अंग्रेजों के पास अपनी सेना नहीं थी ..जो थी वो भारतीय सेना थी या तुरंत बनाई हुई ब्रिटिश सेना ...

ऐसा ही समय 1857 में भी आया था जब अंग्रेजों को चुन चुन कर मारा गया था ..और इसमें भारतीय महिलाएं और सामान्य कृषक मजदूर सभी शामिल थे औरतों ने अंग्रेजो की गर्दनें दरातियों से काट डालीं थी इस भयानक संहार के बाद कुल 3-4 सौ अंग्रेज किसी तरह भारत से जान बचाकर भागे थे या छुप कर रह रहे थे... बाकीयों को क्रांतिकारियों ने मार डाला था ...1857 की क्रांति सफल थी राजनैतिक ऐक्यता नहीं थी इस फूट ने पुनः विदेशी गुलामी की नींव डाली

जब अंग्रेजों से देश खाली था उस समय के कुछ गद्दार देशी राजाओं ने अंग्रेजों को पत्र लिखे थे की आओ और यहाँ शासन करो ...उसके बाद अंग्रेजों ने यहाँ के देशी राजाओं नवाबों के साथ मिल कर भारतीय क्रांतिकारी परिवारों गाँवो शहरों और प्रान्तों में खूनी खेल शुरू किया और ये दमन किया जो निरंतर चलता रहा ...इसका स्वरूप बदल गया भारतीय प्रजा को दीन हीन बनाया गया

राजनैतिक धार्मिक और भारतीय के रूप में लोग एक दूसरे से उतने जुड़े हुए नहीं थे ..छूत अछूत मत मतान्तरों का अंधकार था लोग शिक्षा विहीन थे ..जिन्हें उठा कर खड़ा करना था ...भारतीय समाज के लोगों ने इसकी जिम्मेदारी ली ..महान व्यक्तियों ने जनजागरण का कार्य पुनः शुरू किया ...ऋषि दयानन्द उनके शिष्यों और आर्य समाज का इसमें प्रथम और अविस्मरणीय योगदान हैं ...जिन्होंने छुआ छूत अविद्या जाति पांति भाषा प्रान्त से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के लिए समाज को आंदोलित किया ...स्वसंस्कृति और स्वराज्य की उपासना आकांक्षा के लिए प्रेरित किया और अब तक भी नित्य इनकी सुरक्षा और संवर्धन के नित्य प्रयत्नशील हैं...

नई जागृति ने नए आंदोलनों को जन्म दिया स्वदेशी हिन्दीभाषा स्वधर्म गौरक्षा इन सभी आंदोलनों और भारतीय क्रांतिकारियों के अदम्य शौर्य और उत्साह का प्रदर्शन किया ..अंग्रेजों को व्यवस्था संभालने में भय हो रहा था ..उन्हें वही पुराने दिन स्मरण हो रहे थे ...किसी तरह अंग्रेजों के मित्रों गांधी आदि ने अहिंसा की लाठी से लोगों को धकेल रखा था ..

सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज अंग्रेजों पर आक्रमण करने वाली थी ...तब अंग्रेजों ने अपने भारतीय मित्र(गद्दार) राजाओं से नवाबों से पूछा की जब सुभाषचंद्र बोस ब्रिटिश गवर्मेंट पर आक्रमण करेंगे तो आप लोग हमारी साहयता करोगे या नहीं अपनी सेना हमे दोगे या नहीं ...राजाओं का उत्तर था कि नहीं हम आप लोगों की कोई सहायता नहीं कर सकते अगर हम ऐसा करते हैं तो हमारी प्रजा ही हमे मार डालेगी

तब अंग्रेजों ने अपने शुभचिंतक गांधी से मदद मांगी ...गांधी ने कहा कि अब और जनमानस को नहीं रोका जा सकता देश तो आपको छोड़ना ही है ...हम आपकी स्थिति को सम्मानजनक बना सकते हैं ...हम ये कर देंगे की आपने अपनी इच्छा से भारतियों पर मेहरबानी करके शासन भारतियों को सौंप दिया है ..आप भागे या हारे नहीं हो  ...उसके बाद ...

भारत पाकिस्तान बंटवारा उसके लिए कमेटियां लोग नियुक्त हुए और दुनिया भर की कवायद और राजनैतिक चालबाजियां चली गईं ...अंग्रेजों के चापलूसों को शासन में हिस्सेदारी मिली ..अंग्रेजों के पिट्ठुओं और नीतियों ने ही इस देश पर अधिकतर समय पर राज किया ...सच को हमेशा छुपाए रखा ..भारतीय जनमानस को तकनीक और संचार माध्यमों से दूर रखा ...

ये पढ़ाते और सिखाते रहे की ..साबरमती के संत ने कर दिया कमाल दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।

आजादी जबकि पूरी नहीं है ये ट्रांसफर ऑफ पावर है ..सत्ता का हस्तांतरण है ..आधा है पर ...ये विजय ये स्वतंत्रता किसी व्यक्ति की नहीं लाखों लाख बलिदानियों ने प्राण और लहू देकर मूक और व्यक्त संघर्ष किया है ..इस स्वतंत्रता को अंग्रेजों की मेहरबानी या अहिंसा से प्राप्त हुआ बताना और मानना न केवल मूर्खता है बल्कि इतिहास को दूषित करके आने वाली पीढ़ी को संघर्ष से विमुख करना है।

जय हिंद
जय भारत

15/8/ 2017 को लिखी पोस्ट

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